यहुदियों की असली पहचान!

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यहुदियों की असली पहचान!

 

लेखन-© हर्षद रुपवते

 

आज के यहुदी कौन है इस बात को लेकर कुछ नये अभ्यासक कन्फ्यूज है और इस वजह से दूसरे लोगों को भी वह कन्फ्यूज करते दिखाई देते हैं। किसी तथ्य को उजागर करने के लिए सही जानकारी आवश्यक होती है, तथा जानकारी का सही आकलन और विश्लेषण करना बेहद जरूरी होता है। प्राचीन यहुदी कौन थे, वर्तमान यहुदी कौन है और क्या यहुदी ब्राह्मण जेनेटिकली एकही लोग है? यह जानने समझने के लिए उत्सुक वाचकों को प्रस्तुत विश्लेषण उपयुक्त रहेगा ऐसी आशा है।

प्राचीन काल में मेडिटरेनियन मतलब भुमध्य सागर प्रदेश में जो लोग रहते थें, उन्हें भारत में द्रविडीयन कहते हैं। ये मूल भारतीय लोग थे जो इसा.पु 8-10 हजार साल पहले सिंध से सुमेरिया, अरब, इजिप्त, कनान, क्रीट तक फैलकर बसे हुए थे। शक, कुस, कस्सप, पाल ऐसे कई नाम से इन मेडिटरेनियन वंश के लोगों की जनजातियां तथा कबीले थे। इन में जुडा या जुडो नाम का एक कबीला था। जिसे लैटिन में जुडियस, ग्रीक में युदा, फ्रेंच में जुइफ, जर्मन में जूड और अंग्रेजी में ज्यू कहा गया हैं।

यह जुडा कबीला जिस प्रदेश में रहता था उस प्रदेश का नाम जुडाह था, ग्रीक इतिहासकारों ने उसे जुडिया कहा है। आज वहा पॅलेस्टाईन, इस्राएल देश स्थित है।

यहुदियों की भाषा सेमिटिक वर्ग की हिब्रू थी। जुडा को हिब्रू भाषा में येहुदा कहा जाता था और प्राचीन हिब्रू में याहवो तथा शुरू के हिब्रू में इवरिम कहा जाता था। इब्र शब्द से इब्रु, हिब्रू, अब्र, अबीर, अभीर, अहिर, ओफिर, इवरिम शब्द बने। इवरिम से इब्राहिम तथा अब्राहम शब्द बना है जिसे भारत में ब्रम्हा कहा गया है। अब्राहम को इराणी साहित्य में अहिरावण या अहिरमान भी कहा गया है।

इसा.पुर्व 7 वी शताब्दी के दौरान असिरियन आक्रमण के बाद कुछ जुडा जनजातियां इराण और भारत में जाकर बस गयी। जुडा जनजाति के लोगों को ही भारत में यदू, यादव, जाधव, जादोन, जाडेजा, अभीर, अहिर आदी अनेक नामों से जाना जाता है।

जुडिया में जो लोग बचे हुए थें, वह लोग इसा.पुर्व दुसरी शताब्दी के दौरान बौद्ध धम्मीय बने। जुडियन बौद्ध सभ्यता को ही यहुदी धर्म कहा गया था। ग्रीक सभ्यता के प्रभाव में इसे हेलेनिस्टिक यहुदी धर्म भी कहा जाता था।

फरीसि और सदूकि इन संप्रदायों के बीच संघर्ष के कारण हेलेनिस्टिक बौद्ध-यहूदी धर्म का पतन दूसरी शताब्दी में शुरू हुआ। धीरे-धीरे फरीसी मान्यताएँ रब्बीनिक (पुरोहितवादी) यहूदी धर्म के लिए धार्मिक प्रथाओं का आधार बन गई। 6 वीं शताब्दी से तालमुड ग्रंथ में संहिताकरण के बाद रब्बीनिक (पुरोहितवादी) यहूदी धर्म मुख्यधारा बन गया। इस ज्यू धर्म में जो लोग शामिल होते गये, वह सेफार्डी ज्यू, सिरियन ज्यू, मिझराही ज्यू, येमेनीट ज्यू, बगदादी ज्यू, अफ्रीकन ज्यू आदी नामों से जाने जाते थे।

इस.8 वी सदी में दक्षिण रशिया के खजार स्टेप्स (जॉर्जिया) प्रदेश में कुछ हेफ्थालिट्स समूह के लोगों ने रब्बीनिक ज्युडाइझम/यहुदी धर्म अपनाया। ध्यान रहे यह हेफ्थालिट्स उसी समूह के लोग थे जिन्होंने भारत में 6-7 वी सदी में आक्रमण और आगमन किया था। जिन्हें भारतीय इतिहास में हुण कहा गया है। दरअसल ये समूह दक्षिण रशिया के स्टेप्स प्रदेश की घुमक्कड़ टोलियां थी। वर्तमान तुर्कमेनिस्तान स्टेप्स प्रदेश के हैताल/अफदाल क्षेत्र में बसने के कारण उन्हें इतिहासकारों ने हेफ्थालिट्स भी कहा है। यह वही टोलियां थी जिनसे कुछ लोग भारत में जाकर ब्राह्मण बने, इराण में जाकर पारसी बनें, अफगान में जाकर अब्दाली, अफ्रिदी, (दुर्रानी मुस्लिम) बने, सिंध पाकिस्तान में जाकर हुसैनी ब्राह्मण बने और कुछ खजार (जॉर्जिया) में जाकर यहुदी/ज्यू धर्मीय बने।

इन्हीं खजारीयन हेफ्थालिट्स ज्यू लोगों ने इस.10 वी सदी में खुद को अन्य ज्यूओं से अलग अश्केनाझी ज्यू घोषित किया। यही से यह अश्केनाझी ज्यू पुर्व युरोप, जर्मनी, रशिया, अमेरिका में फैल गये। पहले के सेमिटिक यहुदियों ने बड़ी मात्रा में इस्लाम, क्रिश्चियन धर्म अपना लिया, परिणाम उनकी यहुदी संख्या लगभग खत्म हो चुकी है। इसलिए विश्व में आज यहुदी धर्म में 99 प्रतिशत अश्केनाझी ज्यू लोग ही शामिल हैं। जो लोग आज न्यु वर्ल्ड ऑर्डर का संकल्प लेकर दुनियापर राज करने के लिए षड्यंत्र किये जा रहे हैं। इन्हीं अश्केनाझी यहुदियों ने पॅलेस्टाईन पर झुठा हक जताया तथा पॅलेस्टाईन के मूलनिवासीयों को वहा से खदेड़ा और इस्राएल देश बनाकर पॅलेस्टाईन भूमि को हड़प लिया। वास्तविकता यह है कि, इन अश्केनाझी यहुदियों का पॅलेस्टाईनसे और पुराने द्रविड़ियन यहुदियों से कोई भी मानववंशीय तथा धार्मिक संबंध नहीं था। याद रखें प्राचीन जुडा/यहुदी यह मेडिटरेनियन (द्रविड़ियन) जनजाति का एक नाम था, धर्म का नाम नहीं। आज यहुदी/ज्यू एक वंशवादी धर्म का नाम है।

महत्वपूर्ण है कि, ज्यादातर डीएनए रिपोर्ट के मुताबिक अश्केनाझी ज्यू R1a1a हॅप्लोटाईप दर्शाता है, उसी प्रकार ब्राह्मण और कई कथित क्षत्रिय कम्युनिटी का डीएनए हॅप्लोटाईप R1a1a दर्शाता है। स्पष्ट है कि, अश्केनाझी ज्यू और ब्राह्मण जेनेटिकली एकही है।

कुछ स्वयंघोषित संशोधक ब्राह्मणों का मूल स्थान याम्न कल्चर से जोड़ने की नाकाम कोशिश करते हैं। वास्तविकता यह है कि, याम्न कल्चर के लोग R1b डीएनए हॅप्लोटाईपसे संबंधित थे, जो कि प्रमुख रूप से आज के ब्रिटिश, फ्रेंच, डच, पोर्तुगीज, आयबेरीन, रशियन, ग्रीक आदी पश्चिम युरोपीयन लोगों के पुर्वज थे। जबकि ब्राह्मण किसी भी एकमात्र कल्चर के मूल रूप से संबंधित नहीं है।

आज के यहुदियों की तरह इस.6-7 वी सदी में खजार से भारत में आये हुए ब्राह्मण भी भारत के प्राचीन बमनोंसे और पारसी अथर्वन ब्राह्मणों से अलग थे। जो आज इनमे घुल-मिल गए है। तथा १२ वी सदी में निर्माण किये वैदिक धर्म को सबसे प्राचीन 5000 साल पुराना धर्म बताते आए हैं। ठीक उसी तरह जैसे आज के यहुदी इस.6 वी सदी में निर्माण किये रब्बीनिक जुडाईझम को सबसे प्राचीन 4000 साल पुराना धर्म बताते आए हैं। ब्राह्मण खुद को ईश्वर समझते हैं ठीक उसी तरह अश्केनाझी ज्यू खुद को ईश्वर ने चुने हुए लोग समझते हैं। दोनों के धर्मों में किसी अन्य वंश के व्यक्ति को धर्मांतर करने की पाबंदी है। दोनों समुदाय में सुपेरीअरीटी कॉम्प्लेक्स की मानसिक बीमारी कॉमन है।

स्पष्ट है कि, प्राचीन यहुदियों के वंशज आज यादव, जाधव, अहिर लोग हैं। तथा वर्तमान यहुदी, पारसी, ब्राह्मण लोग मूल रशियन स्टेप्स के घुमंतू लोग हैं। आशा करता हूं कि, इस लेख को समझनेवाले लोग आज के अश्केनाझी यहुदियों को प्राचीन द्रविड़ियन यहुदी मानने की ऐतिहासिक भूल नहीं करेंगे।

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